“झूठ”
“झूठ”
झूठ की होती मीठी बोली
सुनकर मन ललचाए,
तब सच की कड़वी बोली
किसको पसन्द आए?
झूठ की चिता पर देखा हमने
सती होते सच को,
पता नहीं फिर कहते क्यों हैं
आँच न आते सच को?
“झूठ”
झूठ की होती मीठी बोली
सुनकर मन ललचाए,
तब सच की कड़वी बोली
किसको पसन्द आए?
झूठ की चिता पर देखा हमने
सती होते सच को,
पता नहीं फिर कहते क्यों हैं
आँच न आते सच को?