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19 Aug 2021 · 1 min read

झूठ की रोटी चबाकर पल रहे हैं

गीतिका
मापनी-२१२२ २१२२ २१२२

नफरतों की आग में जो जल रहे हैं।
आज अपने-आप को ही छल रहे हैं।

द्वेष, ईर्ष्या आपसी रंजिश हृदय में,
राह में काँटे बिछाकर चल रहे हैं।

चल नहीं सकते समय के साथ जो भी,
हार कर निज हाथ अपना मल रहे हैं।

कट रही है जिंदगी कठिनाइयों में,
शाम के सूरज की माफिक ढल रहे हैं।

चौकिदारों से यहाँ बचकर रहो जी,
झूठ की रोटी चबाकर पल रहे हैं।

(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
☎️7379598464

1 Like · 314 Views
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