जो पूरी ग़जल बन गए
ज़ज़्बात जो पूरी ग़जल बन गए ।
एक बात से बात कुछ यूँ बन गए ।
तेरी यादों में चैन बैचेन हो रही ।
नर्म सेज चुभन अहसास दे रही ।
इन तन्हा तन्हा बैचेन रातों में।
जज़्ब किया तेरी की यदों को ।
आता नही चाँद चाँदनी रातों में ।
भूला झील सी इन आँखों को ।
तपते अहसासों की ठंडक में ,
झोंके लाते गुजरी यदों को ।
भूल गया जाने क्यों अब वो ,
रुख़सारो के शीतल अंगारों को ।
जाओ साजन अब सहा जाता नही ।
इस बिरह अगन जला जाता नही।
… विवेक दुबे”निश्चल”@..