जो पहले थी वो अब भी है…!
बेरहम वही फिर ख़ामोशी…
जो पहले थी वो अब भी है..!
अंज़ाम वही फिर मायूसी…
जो पहले थी वो अब भी है…!
कितने पतझड़, कितने वसंत,
कितने सावन आये, जाये..
बस तूं ही इतना इतराये
इस प्यासे दिल को तरसाये..
मुरझाई हुई बगिया मेरी…
जो पहले थी वो अब भी है…!
इक दिन ऐसा भी आयेगा
ये सफ़र देख थम जायेगा
तूं माने या फिर ना माने
दिल तेरा भी पछतायेगा…
तू जितना मुझसे इतराता है
वो उतना तुझे तरसायेगा…
फितरत की तल्ख हक़ीक़त तो
जो पहले थी वो अब भी है…!
बेरुखी उधर, बेबसी इधर…
जो पहले थी वो अब भी है…!!
© अभिषेक पाण्डेय अभि