जो कर्म किए तूने उनसे घबराया है।
गज़ल
221/1222/221/1222
जो कर्म किए तूने उनसे घबराया है।
अब मुक्ति मिले कैसे गंगा में नहाया है।
पाला है जिसे उसने आश्रम भिजवाया है।
जो दर्द सहा मां ने वो याद न आया है।
कमज़र्फ कहेंगे सब वो भूल गया सबकुछ,
मां बाप रहे भूखे पर उसको पढ़ाया है।
जब शांति की बातें थीं कोई न बढ़ा आगे,
जब जंग हुई सबको दुनियां न लड़ाया है।
बचपन की कहावत है मतलब न समझ पाये,
पड़ने ही लगे ओले सिर जैसे मुढ़ाया है।
नफ़रत से नहीं हासिल जो प्यार से पाएगा,
‘प्रेमी’ है वही जिसने ये पाठ पढ़ाया है।
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी