जो अगर जां-ब-लब नहीं आती
जो अगर जां ब-लब नहीं आती
यूँ ग़ज़ल ता-ब-लब नहीं आती
वो कभी मुन्तज़िर रहा होगा
याद उसको भी अब नहीं आती
मेरे दिन से उजाले ग़ाफ़िल हैं
मेरी रातों में शब नहीं आती
भूल जाना तो मेरी कोशिश है
याद आने को कब नहीं आती
उनके नक़्शे कदम पे चलना है
जिनको चलने की छब नहीं आती
ख़्वाब कैसे दिखें “समद” तुझको
नींद आँखों में जब नहीं आती
भारद्वाज “समद”