जेठ में बरसात
जेठ के माह में,
तपती दुपहरिया में,
खेत बीच खड़ा किसान,
तक रहा था आसमान ।
जेठ के माह में किसान ….
शरीर से बहा रहा पसीना,
चीरने को धरती का सीना ,
बोने को उसमें नगीना ,
लहलाने को उसमें
बाजरा,कपास,धान और मक्का ।
जेठ के माह में किसान …..
इंद्र देव का करें आवाहन,
तपती धरा को करें नम ,
हर ले हमारे सारे गम ।
जेठ के माह में किसान ….
अकस्मात घिर आई बदरिया,
जिसके आने भर से ,
तर हुआ धरती का सीना,
छोड़ सुध-बुध ,
बैलों की जोड़ी संग,
चीर डाला धरती का सीना,
डाले फिर बीज रूपी नगीने,
तदुपरांत उसमे से उपजे,
बाजरा, कपास, मक्का और धान ।
जेठ के माह में,
ये सब देख ,
हर्षित हुआ किसान !
भूल गया , अपनी दुखों की दास्ताँ !
जेठ के माह में किसान ……