*जूते चोरी होने का दुख (हास्य व्यंग्य)*
जूते चोरी होने का दुख (हास्य व्यंग्य)
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इस संसार में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसे जीवन में जूते-चप्पल चोरी होने का दुख नहीं हुआ हो। यह दुख सभी के जीवन में आता है, अतः शोक करने योग्य नहीं है। फिर भी शोक तो होता ही है।
चप्पल अगर पहनने के बाद व्यक्ति किसी स्थान पर उतारेगा तो कभी न कभी चोरी अवश्य होगी। चप्पल उतारने के बाद भला कितनी देर तक और कितनी दूर तक कोई व्यक्ति अपनी चप्पल का ध्यान रख सकता है ? जब चप्पल दृष्टि से ओझल हो जाती है तब वह भगवान भरोसे हो जाती है । लौटने पर वापस मिल जाए तो भगवान की कृपा है और न मिले तो समझ लो कि चप्पल-चोर ने अपना काम कर दिया।
चप्पल जब से महंगी हुई है तब से उसके चोरी होने का दुख भी बढ़ने लगा है। पर्स चोरी हो जाए तो शायद उतना दुख नहीं होगा, जितना चप्पल चोरी होने का होता है । आजकल चप्पल पॉंच-पॉंच हजार रुपए तक की मिलती है। उनकी सुरक्षा प्राणों से बढ़कर की जाती है। ऐसे स्थान पर व्यक्ति को जाने से बचना चाहिए, जहां चप्पल उतार कर जाना पड़ता है। अगर जाना मजबूरी है और चप्पल उतारना ही है तब टूटी-फूटी पुरानी चप्पल पहनकर जाना चाहिए। ऐसी चप्पल कि जिसे चुराते हुए चोर भी शर्माए। आप चौराहे पर चप्पल छोड़ कर चले आओ और चौबीस घंटे बाद भी जो वहीं पर पड़ी मिले, ऐसी खराब चप्पल पहनकर उतारने के लिए जाना चाहिए।
मेरी राय में तो एक जोड़ी चप्पल व्यक्ति को ‘उतारने वाली’ बना लेनी चाहिए। जहां कहीं ऐसी जगह जाना हुआ जहां चप्पल उतारती पड़ती है, तो वहां ‘स्पेशल उतारने वाली चप्पल’ पहन कर चले गए। बेफिक्री के साथ नंगे पैर घूमते रहे। चप्पल की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं।
एक जमाना था जब लोग किसी पर गुस्सा होते थे, तो पैर से चप्पल उतार कर दूर से ही फेंक कर मार देते थे। वह सस्ते का जमाना था। चप्पल रही तो कोई बात नहीं, और चली गई तब भी कोई बात नहीं। चप्पल की उन दिनों कोई कीमत नहीं होती थी। तभी तो फेंक कर मार दी जाती थी। आज चप्पल सबसे ज्यादा संजोकर रखने योग्य वस्तु है। चप्पल बहुमूल्य है। उसे खोना कोई पसंद नहीं करता। ब्याह-शादी में दूल्हे का जूता चुराने का रिवाज तब से ही शुरू हुआ होगा, जब से जूता महंगा हुआ होगा। सस्ता होता तो कोई क्यों चुराता और चुरा भी लेता तो उसके मुंह मांगे पैसे भला कौन देता ?
एक फिल्म का गाना बहुत मशहूर हुआ। जिसके बोल हैं ‘मेरा जूता है जापानी’। इस फिल्मी बोल से भी जूते की महत्ता प्रकट हो रही है।
जूते के बारे में गुणीजनों का अनुभव है कि आंख बंद करके भी अगर कोई जूता पहने तो एक सेकंड में पहचान लेगा कि वह अपना जूता पहन रहा है या किसी दूसरे का उसने पहन लिया है । इसके बाद भी जूते चोरी हो जाते हैं। कई बार चोर अपना जूता छोड़ जाता है और दूसरे व्यक्ति का जूता पहन कर चला जाता है। ऐसे में व्यक्ति को बेढ़ंगे, बेडौल और अटपटे साइज का जूता पहन कर घटनास्थल से लौटना पड़ता है। कई बार चतुर लोग नंगे पैर जाते हैं और जूते पहनकर अपने घर लौट आते हैं। ऐसे में जो व्यक्ति जूता पहन कर जाता है, उसे नंगे पैर लौटना पड़ता है।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर, उत्तर प्रदेश
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