” जुड़ने लगी कड़ी ” !!
गीत
शर्म निगोड़ी बैरन ,
पीछे आज पड़ी !
अनजाने ही उनसे ,
अँखियाँ गज़ब लड़ी !!
साधे सधा निशाना ,
पाये समझ नहीं !
बातों ही बातों में ,
उलझे रहे कहीं !
पल में ठगन करे है ,
जादू भरी छड़ी !!
रिश्तों में नहीं चमक ,
अधीर लगे सभी !
तुमसे मिली ललक जो ,
पायी नहीं कभी !
अनचाही सी कैसी ,
जुड़ने लगी कड़ी !!
उम्मीदें भरती हैं ,
बहुधा रंग नया !
अपने पाले से दिल ,
यों ही छूट गया !
बेगाने से दिन अब ,
हँसते घड़ी घड़ी !!
बृज व्यास