जुबान दबाकर बैठे हैं
तुम कुछ बोलो सुन लेगे
जुबान दबा कर बैठे हैं ।
उनको मिली जीत मुबारक
हमको हार मुबारक है ।
दर्द दिया जो घाव हरे हैं
दवा लगाकर बैठे हैं
जिनमें सहनशीलता कम है
वो तो ऐठे बैठे हैं ।
लिखी लकीरे हाथ में मेरे
जो बिधि ने रची बनाई ।
मेहनत से मैंने बहुत कुछ
उससे अधिक ही पाई है ।
कोई अपनाया सच्चाई
किसी की झूठ कमाई है
अच्छाई को पाने में मैंने
खर्ची पाई पाई है ।
हम सचमुच ही बहुत सुखी है
संतोष मेरी कमाई है ।
वो तो झूठ फरेब लिए है
पाप कमाकर बैठे हैं ।
अच्छा खाने वाला पाता
अच्छी सोच भलाई है ।
पर जाना माना मैंने
आदत की कहाँ दवाई है ।
कुछ बोलो हम सुन लेगे
जुबान दबकर बैठे हैं ।
घाव दिया था दिल तुमने
उसकी दवा कर बैठे हैं ।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र “विप्र “