1) जी चाहता है…
याद आती है जब कभी बेवफाई तुम्हारी,
तुमसे मुँह फेर लेने को जी चाहता है।
लेकिन फिर तुम्हारी मासूमियत पर तभी,
तुम्हारी भूल को नादानी कह देने को जी चाहता है।
डूबने लगता है दिल माज़ी की हसीन याद से जब कभी,
तुम्हारे पहलू में सिमट जाने को जी चाहता है।
बेवफा कहना पड़ेगा तुम्हें सोचा न था कभी,
मगर अब तुम्हें खुद ही बेवफा कहने को जी चाहता है।
वादा किया था तुमसे जो साथ निभाने का कभी,
वो वादा वो कसम तोड़ देने को जी चाहता है।
तुमने ही संगदिल दिल तोड़ा है मेरा,
तुमसे ही इस दर्द की दवा लेने को जी चाहता है।
पूछता है जब कभी भी हाल-ए-दिल कोई हमसे,
तुम्हारी जफ़ा याद कर रो देने को जी चाहता है।
रुख्सत पर जब तुम्हारी बैठने लगता है दिल,
दामन थाम कर तुम्हें रोक लेने को जी चाहता है।
सोचते हैं हर बार करेंगे सलाम दूर से तुम्हें मिलने पर,
देखते ही तुम्हें मगर लिपट जाने को जी चाहता है।
तोड़ें दिल तुम्हारा सोचते तो हैं हम भी मगर,
दर्द के अहसास से तुम्हें माफ़ कर देने को जी चाहता है।
ढूँढ़ती हैं नज़रें हर शख्स में तुम्हें ही मगर,
मायूस हो जाने पर रो देने को जी चाहता है।
बाद मुद्दत के मिलते हो दो पल के लिए जब कभी,
हाले-दिल सुना देने को जी चाहता है।
लब पर तुम्हारे मगर तब्बसुम देख कर,
होंठ सी लेने को जी चाहता है।
चले तो आये दूर तुमसे हम खफ़ा हो कर,
याद तुम्हारी आने पर तुमसे मिलने को जी चाहता है।
ख़ता तो कोई नहीं की कभी हमने मगर,
तुम्हारी ख़ातिर ख़तावार कहलाने को जी चाहता है।
तुम्हारे पहलू में पाते हैं खुद को जब कभी,
तुम्हारे क़दमों में दम तोड़ देने को जी चाहता है।
जन्नत की ख़्वाहिश की जब कभी भी हमने,
तुम्हारे ख़्वाबों की दुनिया में चले आने को जी चाहता है।
तुम्हारे ख़्वाबों की दुनिया में होते हैं हम जब कभी,
जहां को अलविदा कह देने को जी चाहता है।
मिलने पर तुमसे कभी-कभार,
दिल्लगी करने को जी चाहता है।
रुस्वाई के डर से मगर तभी,
ख़ामोश रह कर तुम्हें सताने को जी चाहता है।
समझ नहीं पाते तुम जब आँखों की ज़ुबाँ,
आँखें बंद कर अश्क़ पी लेने को जी चाहता है।
दिल पर मगर जब बस नहीं रहता,
लब से हाले-दिल बयां कर देने को जी चाहता है।
पुकारते हो जब कभी मुहब्बत से तुम,
तोड़ कर हर बंधन चले आने को जी चाहता है।
रुसवाई के डर से मगर तभी,
बढ़े कदम रोक लेने को जी चाहता है।
थक जाते हैं जब दुनिया के सितम सहते-सहते,
तुम्हारे पहलू में कुछ पल सुस्ताने को जी चाहता है।
जलता है ज़माना हमारी मुहब्बत से जब,
ज़माने को और जलाने को जी चाहता है।।
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नेहा शर्मा ‘नेह’