सांस
माक्स लगाकर,
किसान चाचा,
खेत की ओर कूंच करते,
रास्ते में,
मंगरू भैया,
माक्स में ही मिलते
ओ शौच से आते ।
आमने–सामने होते ,
मंगरू भैया,
बोले झिझकते –
चाचा !
भगवान के घर में,
सांस गिनती,
होते अब दिखते ।
थोड़ा भावुक,
मंगरू भैया,
फिर बोले –
जब कोटा फुल
होते ,
जितना भी करे,
लाख कोशिशें,
न बचेकी जाने ।
जब तक है जीवन ,
ले ले आनन्द,
प्रलय भी उसे,
नहीं रोक सकते,
मंगरु भैया,
मुस्कुराते,
हर्षित मन बनाते ।
ये संवाद सुनते,
किसान काका,
डाह भाव से ,
हँस्ते ,
भित्तर अपने,
बोले गम छिपाते –
हाँ मंगरू हाँ ,
यही तो है जिंदगी अपने ।
भगवान मनुष्य को,
विवेक देके,
भेजें है यहां ,
देश–काल के हालात सब समझे
आचरण उसी तहर करे,
अब,मंगरू भैया शांत हो गये,
चाचा पथ चला अपने ।
#दिनेश_यादव
काठमाण्डू (नेपाल)
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