जीवन में समस्याओं का मूल कारण है क्रोध या गुस्सा
जीवन में समस्याओं का मूल कारण है क्रोध या गुस्सा
मनुष्य जीवन में क्रोध अग्नि एक दावानल की तरह होती है जो दूसरों पर प्रभाव डालने के साथ-साथ स्वयं को भी जलाती रहती है । अगर हम आत्म- चिंतन करें और इसके प्रभावों का गहनता से अध्ययन करें तो हमें यह पता चलेगा कि यह दूसरों की अपेक्षा स्वयं को ज्यादा दुख एवं कष्ट पहुंचाती है । क्रोध में मनुष्य स्वयं का विवेक व सहनशीलता खो देता है और वह सही और गलत निर्णय लेने में भी पूर्णतः असमर्थ हो जाता है । अक्सर सुनने में आता है कि व्यक्ति ने क्रोध में आकर दूसरों को हानि पहुंचाई लेकिन मेरा मानना है कि वह हानि दूसरों को नहीं बल्कि उसने स्वयं को पहुंचाई है। क्रोध के मूल कारणों में मुख्यतः स्वयं की गलतियां छिपाना, झूठ बोलना , स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करना , सच का सामना न कर पाना , व अपनी शारीरिक इंद्रियों को वश में न रख पाना शामिल है । किशोरावस्था में जब माता -पिता अपने बच्चों को सही और गलत का ज्ञान देते हैं तो उस समय बच्चे मन ही मन क्रोध वश अपने माता पिता को कोसते हैं और संभवतः इसका बुरा परिणाम ही निकलता है । वर्तमान खान-पान व जीवन शैली भी इसका एक मुख्य कारण बनता जा रहा है । छोटे परिवारों मे परस्पर मेलजोल तो जैसे खत्म ही हो गया है । इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति सामाजिक न होकर केवल अपने तक ही सीमित रह गया है ।यह अकेलापन भी उसके क्रोध का एक मुख्य कारण माना गया है। क्रोध में संभवतः व्यक्ति को ब्लड प्रेशर व हृदय घात जैसी बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है और कई बार तो उसे अपने शरीर से भी हाथ धोना पड़ सकता है । क्रोध या गुस्से में व्यक्ति अपने और पराए में फर्क भी महसूस नहीं कर पाता । एक खबर पढ़कर मैं स्वयं हैरान हो गया जब एक पिता ने क्रोध वश अपने ही बच्चों व परिवार के सदस्यों को क्रोध अग्नि की भेंट चढ़ा दिया। बाद में उसके पास पछतावे के लिए भी कुछ नहीं रहा। मेरा मानना है कि जब कभी आप किसी निर्णय से संतुष्ट नहीं है या आप को क्रोध आ रहा हो तो थोड़ी देर के लिए एकांत में जाकर उसके अच्छे व बुरे परिणामों के बारे में विचार करें। क्रोध में लिया गया कोई भी फैसला सही नहीं हो सकता और इसमें स्वयं को नुकसान होने की ज्यादा संभावना होती है। विनम्रता व आदर भाव क्रोध निवारण के अचूक हथियार माने गए हैं । आप सभी से मेरा निवेदन है कि जीवन में विनम्रता को अपनाकर स्वयं को खुश रखे ।