जीवन बड़ा अमूल
जीवन बड़ा अमूल रे भईया,
जीवन बड़ा अमूल ।
जो न समझा इस जीवन को,
उसने कर दी भूल रे भईया ।
जीवन बड़ा अमूल ।
हम जब आये इस धरती पर,
लाये इस जीवन को ।
भांति-भांति के खेल रचाकर,
पाले इस तन मन को ।
भागा-दौड़ी के इस युग में,
हम सब भूल गए जीवन को ।
यंत्र-तंत्र के जाल में उलझे,
संतुष्ट करें बस इस मन को ।
खान-पान व्यवहार को त्यागें,
बस ठूँस रहे इस तन में ।
सही गलत का ज्ञान भुलाकर,
खो गएँ माया उपवन में ।
तन-मन हानि करें पल-पल,
इस आप-धापी के जग में ।
सुख शान्तिः सब बिखर गए,
अब चिंता है रग-रग में ।
अपनों से वो मिल न पाए,
गैरो को वो याद करे ।
सबके साथ वो बैठा फिर भी,
अपने मन में बात करे ।
प्रकृति से रह कर दूर,
कब सँवरा है मानव जीवन ।
जितनी भी प्रगति कर लो,
सबसे ऊपर है जीवन ।
तन-मन हानि करें पल-पल,
इस आप-धापी के जग में ।
सुख शान्तिः सब बिखर गए,
अब चिंता है रग-रग में ।
अपनों से वो मिल न पाए,
गैरो को वो याद करे ।
सबके साथ वो बैठा फिर भी,
अपने मन में बात करे ।
प्रकृति से रह कर दूर,
कब सँवरा है मानव जीवन ।
जितनी भी प्रगति कर लो,
सबसे ऊपर है जीवन ।