जीवन नौका
तिरती जाए जीवन नौका
नदिया पर वह तिरती है
लहरों से अंठखेली करती
तूफ़ानों से लड़ती है
मन्थर मन्थर कभी चले यह
कभी गति को पकड़ती है
धीरज दे कर पास बुलाये
या फिर छोड़ निकलती है
तिरती जाए जीवन नौका।
कभी सम्भल कर भर्ती है पग
डगमग डगमग चलती है
बातें करती है नदिया से
या खामोश निकलती है
बुनती है स्वप्निल तारों को
या सीपों को गिनती है
रिमझिम बारिश से बतियाती
कलियों सी वह खिलती है
तिरती जाए जीवन नौका।
नौका बिन नदिया है सूनी
नदिया बिन न नाव चले
बिन सांसे जीवन है सीमित
जीवन श्वासें संग बहें
सागर तुझे पुकार रहा है
ऐ नौका तू तिरती जा
गहराइयों से कर ले नाता
जलधि संग तू प्रीत लगा
तिरती जाए जीवन नौका।
विपिन