जीवन तेरे कितने रूप
जीवन तेरे कितने रूप
कहीँ पर छाँव कहीँ पर धूप
कभी ममता का मधुरिम पुंज
कभी निर्जन वन का स्तूप।
कभी कड़वाहट का अहसास
कभी गुड़ की ढेली का भास
कभी काँटों की चुभन सा दर्द
कभी बर्फीली रातें सर्द
तुम्हारे अगनित रूप अनूप
कहीँ पर छाँव कहीँ पर धूप
कभी तुम शत्रु कभी तुम मित्र
कभी साधारण कभी विचित्र
कभी चंदन और रोली हो
कभी तुम विष की गोली हो
तुम्हारा देखा अजब स्वरूप
कहीं पर छाँव कहीँ पर धूप
कभी मदमस्त स्वरूपा तुम
कभी क्रन्दन विद्रूपा तुम
तुम्ही से मोह तुम्ही से कोह
तुम्हारी पाया कोई न टोह
कहीं सुन्दर तो कहीं अघरूप
कहीँ पर छाँव कहीँ पर धूप
कभी तुम लगती गंगाजल
कभी सागर सा मन निर्मल
कभी तुम सबको प्यारी हो
कभी तुम सब पर भारी हो
कभी कंगाल कभी तुम भूप
कहीं पर छाँव कहीँ पर धूप
तुम्ही हो आदि तुम्ही हो अंत
तुम्ही से देता बौर बसंत
प्रकृति को दे दो अब संदेश
मिटा दो सबके मन से क्लेश
दिखा दो अपना अनुपम रूप
कहीँ पर छाँव कहीँ पर धूप
जीवन तेरे कितने रूप
कहीं पर छाँव कहीँ पर धूप
कभी ममता का मधुरिम पुंज
कभी निर्जन वन का स्तूप
जीवन तेरे कितने रूप
जीवन तेरे कितने रूप