जीवन चक्र
घर की जिम्मेदारी की जद में आ गया
एक नन्हा कल मुश्किल में आ गया
पिता जी को लगी थी लत दारु की
उस में पिता का जीवन चला गया
वो घर का नन्हा सबका प्यारा घर के खातिर
किसी होटल का बैरा हो गया
खिलौना से खेलने की उम्र में
नन्हा सा वो बालक झट बड़ा हो गया