जीवन को अतीत से समझना चाहिए , लेकिन भविष्य को जीना चाहिए ❤️
“गोबर शहर चला आया धनिया और होरी से लड़ -झगड़ कर, साथ में अपनी लुगाई भी ले आया , वह पेट से है घर में कोई बड़े -बुजुर्ग नहीं है जो यह बता सके कि पेट से होने पर वजन नहीं उठाया जाता । उसकी लुगाई झुनिया करती भी क्या अकेले घर में , गोबर तो काम करने कारखाना चला गया, घर का सारा काम अकेले उस झुनिया को करना पड़ता है अब शायद झुनिया यह सोच रही थी कि अगर सास- ससुर की जतन और सेवा करती तो यह दु:ख नहीं उठाना पड़ता और आज जो पीड़ा हो रही है शायद अतीत की ही देन है । ”
यह कृत्रिम पंक्ति मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘गोदान’ से प्रभावित है कि शायद झुनिया और गोबर अपने अतीत को समझ लेते तो भविष्य को बेहतर तरीके से जीत सकते हैं ।
शायद गोबर और झुनिया जैसे पात्रों के माध्यम से जीवन को अतीत से समझना यानी अतीत के गौरव ,उपलब्धियां तथा छोटी- बड़ी गलतियां ही , भविष्य की रूपरेखा को रेखांकित करती है ।
हिंदी के मुहावरों में प्रसिद्ध मुहावरों को लोग आसानी से कहते हैं कि ” पूत के पांव पालने में ही दिख जाता है” ठीक उसी तरह यदि अतीत को नहीं समझा गया तो शायद ही पूत के पांव की तरह भविष्य का पालना इंगित होने लगे।
अधिकांशतः सामान्य लोग अपने जीवन में उन्हीं अतीत की गलतियों और गौरव को दोहराने का भरसक प्रयास करते हैं वह उसी प्रसिद्धि और गौरव का दम्भ या गर्व भरते हैं जो उनके भविष्य में उजाले और अधिकार दोनों को लाने का प्रयत्न करता है ।
भविष्य कैसा हो , यह व्यक्ति की परिस्थितियां तथा उनके अतीत में चुने हुए निर्णय और विकल्पों से तय होता है उदाहरण के रूप में गोबर झुनिया का भविष्य ‘अकेलापन ‘अवसाद ग्रस्त’ ‘ दुखदाई और कष्ट पूर्ण ‘ रूप से उजागर होगा यह शायद उनके द्वारा चुने हुए विकल्प व परिस्थिति के कारण हो ।
परंतु अतीत में हुए घटनाओं में संशोधन भी तो आसान नहीं , जहां अतीत को व्यक्ति के परिस्थिति वह विकल्प तथा चुने हुए निर्णय ‘माला की भांति ‘ गूथ रही हो तो भविष्य में कैसे जिया जाए ? जबकि भविष्य भी शायद इसी अतीत पर निर्भर है ।
प्रश्न यह उठता है कि अतीत को कैसे समझा जाए या अतीत को बनाते समय निर्णय और विकल्प को चाय की भांति फूक-फूक कर गढ़ा जाए ताकि अतीत उस वक्त बेहतर हो जाए , भविष्य तो बेहतर हो ही जाएगा ।
या अतीत को अलग तरीके से ‘जी’ लिया जाए और भविष्य को एक नए सिरे से अतीत में संशोधन कर गूँथा जाए या भविष्य का यहा नया अध्याय लिखा जाए ।
उदाहरणानुसार अलाउद्दीन खिलजी के बाजार प्रणाली दाग प्रथा व हुलिया प्रथा को तब तक भविष्य का नया अध्याय माना जाए जब तक ‘ शेरशाह सूरी’ और ‘अकबर’ ने इस अतीत को समझा नहीं या इसमें संशोधन नहीं किया ।
ठीक उसी प्रकार आज विश्व ‘जलवायु परिवर्तन’ का दंश झेल रहा है फसलें लगभग कम मात्रा में उत्पादित हो रही है वर्षा की अनियमितता लगभग सूखा की तरफ़ ढकेलती चली जा रही हैं हीटवेव का प्रभाव इतना अग्रसर है कि आज विश्व ‘वेट बल्ब तापमान ‘ से भी गुजर रही है लोगों में हाहाकार मचा हुआ है की यह गर्मी , पृथ्वी का तापमान दिन- प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है लोग ‘लू’ व गर्म हवाओं के चपेट में ज्यादा अग्रसर हो रहे हैं शायद यह अतीत का ही परिणाम था कि आज ‘जलवायु परिवर्तन ‘ भविष्य का नया अध्याय लिख रहा है जो अतीत के वृक्षाउन्मूलन को इंगित कर आज वृक्षारोपण की मांग हेतु भविष्य में जीना सिखा रहा है ।
आज ‘रुस-यूक्रेन ‘ युद्ध के परिणाम का प्रभाव भविष्य का नया अध्याय नए ‘कलम-स्याही’ से लिखने को आतुर है ।
कल तक यूक्रेन रूस का ही अर्थात सोवियत संघ का अतीत हुआ करता था वह भी 15 देशों के ही भांति सोवियत संघ में शामिल हुआ करता था ।
उनकी संस्कृति वहां के लोग तथा वहां की भाषा अतीत में इसी के अंतर्गत समाहित थी आज वह अपने ‘ सर्वाइवल ‘ के लिए अपना भविष्य जी रहा है ।
वैसे ही आज वैश्वीकरण के दौर में समाज के अंतर्गत भी प्रथाएं, रीति -रिवाज , नियम व कानूनों में भविष्य के अनुसार परिवर्तन होते चले जा रहे हैं लोगों की वेशभूषा अतीत के वेशभूषा ‘ धोती- कुर्ता’ से परिवर्तित होकर ‘स्टाइलिस्ट टी-शर्ट कोट- शर्ट- टाई और पेंट ‘ के भविष्य में चेंज हो रहा है खानपान और रहन-सहन भी भविष्य को जीना सीखा रही है ।
कल तक परंपरागत विवाह का प्रचलन था, आज भी है , आज संशोधित रूप में ‘अंतरजाति विवाह’ , ‘ लिव -इन -रिलेशनशिप’ प्रचलन तीव्रता के साथ आगे बढ़ रहा है तकनीकों का प्रयोग जैसे सोशल मीडिया टिंडर और अन्य प्लेटफार्म इन्हें आसान व सहज कर रहा है ।
वर्तमान समय ‘ डिजिटल दुनिया ‘ की तरफ रुख कर रहा है अतीत की अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली व सरकारी कामकाज तथा अन्य संस्थागत कार्यो की पहलुओं में सुधार कर उन्हें तकनीकी रूप से सुदृढ़ता भी प्रदान कर रहा है ‘ई-कॉमर्स ‘ , ‘ई-किताबें’ तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तु एवं सेवाएं का चलन भविष्य को आसान और सरल कर रही हैं ।
यह ठीक है कि भविष्य को जीना चाहिए , अतीत में हुए छोटी -बड़ी गलतियों को दरकिनार कर भविष्य को पुनः संशोधित किया जाए , पर कैसे ?
ठीक उसी तरह –
“कितना अच्छा है मुस्कुराते हुए चले जाना
ताकि सब अच्छा ही अच्छा रहे ,
बशर्ते देर से ही सही पर चले जाना चाहिए ।”
कुल मिलाकर कहा जाए तो अतीत को समझना और भविष्य में उसे लागू करना भविष्य को बेहतर व सुंदर बनाया जा सकता है तथा भविष्य को एक नए कलम और स्याही से लिखना ताकि वह गलतियां और वह बुरे निर्णय पुनः शामिल न हो जो भविष्य को अंधकार का रूप दे — ।
‘ कुंवर नारायण’ने ठीक ही कहा है-
“दुर्गम वनों और ऊंचे पर्वतों को जीतते हुए
जब तुम अंतिम ऊंचाई को भी जीत लोगे ,
जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा
अब तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में जिन्हें
तुमने जीता,
तब तुम पाओगे कि कोई फर्क नहीं
सब कुछ जीत लेने में ,
और अंत तक हिम्मत ना हारने में ” ..
Rohit ❤️