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18 Jun 2022 · 1 min read

जीवन की जयकार।

अक्सर अपनेआप से यही,
प्रश्न मैं बार-बार करूं,

मृत्यु सुन्दरी के आगोश में बैठूं,
या जीवन से प्यार करूं,

आलिंगन करूं इस अटल सत्य का,
और मृत्यु को अंगीकार करूं,

या गिरते पड़ते चलता चलूं,
और जीवन का सिंगार करूं,

ओढ़के चादर भविष्य के भय की,
रो-रो के चित्कार करूं,

या थाम लूं दामन आशाओं का,
और नई राहों का अविष्कार करूं,

स्वतः ही आना है एक दिन जिसे,
क्यों उस मृत्यु का पुकार करूं,

जीवन तो नष्ट होगा ही एक दिन,
क्यों मैं इसका तिरस्कार करूं,

आँख खुलती है जब रोज़ ही,
तो क्यों न सुबह का सत्कार करूं,

मान के मृत्यु को अंतिम समाधान,
मैं हार अपनी स्वीकार करूं,

या स्वीकार के हर चुनौती को मैं,
इस जीवन की जयकार करूं,

कवि- अम्बर श्रीवास्तव।

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 160 Views
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