जीवन का रंगमंच
जीवन का रंगमंच
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बड़ी आसानी से कह देते हैं
हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं
चलती हुई मात्र कहानियां हैं
सब अपने हिस्से का पाठ खेलने आए हैं,
बेकार ये नाते , रिश्ते बनाये हैं,
पर रंगमंच पर भी तो…
एक ‘टीम भाव’ का
रिश्ता होता है
और रिश्ते भले झूठे हों…
अदायगी सच्ची होनी चाहिए
दिल तक उतरनी चाहिए
हास्य है, तो पैसा वसूल हंसी
होनी ही चाहिए
चाहे कलाकार…
रो रहा हो….
या गम को खुशी के आंसू में बदल रहा हो
बेटी की विदाई हो
तो आंख नम हो ही जाये…
प्रेम ऐसा कि बस दिल छू जाए…
नसों में एक बार फड़कन आ जाये..
तीर दिल के पार उतर जाए
ये रंगमंच है
इस पर अपना पाठ
ईमानदारी से करना है
ये जानते हुए भी
कि सब झूठा है…
ड्रामा है..
नहीं किया तो…
टमाटर चलेंगे…
जूते बरसेंगे…
टिकट नहीं बिकेंगे…
कलाकार भूखे मरेंगे…
हम तो असल जिंदगी के कलाकार हैं
कैसे मान लें
सब झूठा है…
कैसे अपने हिस्से का पाठ न खेलें
क्या यहाँ टमाटर,
और जूतों के आगे की
कहानी नहीं होगी
आखिर कैसे
कैसे जो दिखता है
उसे छोड़कर
जो नहीं दिखता
उसके लिए सब छोड़ दें
गर मेरा पाठ सच्चा है
तो जीवन के रंगमंच पर
उस अदृश्य को आना होगा
मेरे जीवन का एक पाठ बनकर…..
~माधुरी महाकाश
#महालय #रंगमंच