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9 Oct 2017 · 1 min read

जीवन और जीवन-दर्शन

सांप तो निकल गया,
लाठी भी टूट गई,
हाथ कुछ नहीं लगा,
वही डर वही खौफ,
जीवन तो जिया ही नहीं,
कसक नफरत बेचैनी बढ़ती गई,
मानव जन्म फिर व्यर्थ जाता हुआ,
.
पाबंदियों का माहौल है,
हमारे देश में,समाज में
ज्यादातर चीजों पर रोक लगाई जाती है,
हम जानने के लिए उत्सुकता ही नहीं है,
हमें जागरण की आवश्यकता भी नहीं है,
इस तरह के विचार है हमारे,
.
बहुत बार जाग चुके है,
कोई एक जागा,
उससे ही काम चलाया,
कोई मूल्य नहीं रह गया जागरण का,
उस जागरण से कोई फायदा नहीं हुआ,
भारत के सिर पर से निकलता हुआ,
चीन,जापान पँहुच गया,
तलहटी श्रीलंका तक विस्तार हुआ,
हमने अपने आवरण, कवच नहीं टूटने दिए,
.
हमें कोई रोके,हमें बहुत पसंद है,
कोई हमारी नींद तोड़े दुश्मन है हमारा,
ऐसे जगाने वाले बहुतों को हमने मारा है,
आज हम उनके चित्र पर माला डाल पूजन करते है,हमारी आत्म-ग्लानि यही नहीं रुकती आगे बढ़ी चली जाती है,
.
हम कोरे कागज़ को अशुभ् मानते है,
खाली कागज,दीवार पर ऐसे मौके पर विज्ञापन जरूर लिखते है,ताकि खाली मन शैतान न बन सके,
.
हम गुलामी को बदलने में माहिर है,
दुकानें बदलते रहते है,आदत नहीं,

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 405 Views
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