पतंग
गीत
इक पंतग है जीवन अपना
बस धागों से सैर
जाये उड़ती जब यह यारा
सब मांगे हैं खैर
अभी अभी अंबर चूमा था
लेकर नई उड़ान
हाथों में थी चकरी प्यारे
मांझे में थी तान
रूठी किस्मत, कट-कट यारा
रेखाओं से बैर।।
सब बढ़ते के दुश्मन साथी
अपनी मंजिल, राह
हो बाजू में ताकत जो तो
देखे दुनिया थाह
है विडंबना बस इतनी सी
पंख कटे अब पैर।
नहीं थकेंगे, नहीं रुकेंगे
हम सूरज के वंशी
आंगन जिससे महके चहके
हम राह बसंती
अब हाथों में डोर गगन की
क्या कर लेगा गै़र।।
सूर्यकांत