जीने की कला
हार नहीं मानी कभी , जीती है हर जंग।
तेज़ हवाएँ भी चली , उड़ती रही पतंग।।
सुख – दुख का संगम कहूँ , इस जीवन को मीत।
धूप मिले या छाँव हो , गा मस्ती के गीत।।
आशा ही उत्साह दे , सच्ची इसकी प्रीत।
जैसे सुर के मेल से , मधुर बने हर गीत।।
शब्द – शब्द में है छिपा , मद आनंद अपार।
मानव तू बस सीख ले , शब्दों का व्यवहार।।
कण – कण में सौंदर्य है , करनी है पहचान।
मिट्टी में ज्यों जल गिरे , सौंधेपन का भान।।
इंद्रधनुष के रंग हैं , समझो मत तुम भार।
मस्ती प्रेम लिए चलो , जीवन गंगा धार।।
प्रीतम हँसना सीखिए , सौ की इक ही बात।
चैन पड़े ना शत्रु को , सोचेगा दिन रात।।
?आर.एस.प्रीतम?
नोट – सुरक्षित रहो , घर में रहो।