जीने का ढंग
जब कभी भी देखता हूँ ,
इस फैले आकाश में
करते हुए स्वच्छंद विचरण
पक्षियों के झुण्ड को ।
तो,मन कुछ चाहता है,सीखना ,
मसलन एकता ,
या केवल एकता ।
नयन कुछ चाहते हैं देखना
मसलन हरियाली
या केवल हरियाली ।
आत्मा कुछ चाहती है गाना
मसलन प्रेम
या केवल प्रेम ।
तब ,यह देह भी
कुछ चाहती है ओढ़ना
मसलन सहजता
या केवल सहजता ।
क्यों ? होता है ऐंसा ।
जब कभी भी देखता हूँ
इस फैले आकाश में
करते हुए स्वच्छंद विचरण
पक्षियों के झुण्ड को ।
शायद ! इसलिए-कि
बेज़ुवानों से भी हम
सीख सकते हैं
जीने का ढंग ।