जीत से बातचीत
फिर कराया सामना
नए पल ने जीत का
किसी तरह गुजरा नही
रह गया ठहरा हुआ
आंखो मे आंखे डाले
बात वो करने लगी
अब तक पाई खुशी
और अधिक खिलने लगी
पर लगी वो सिखाने
यह शौर्य नही बस तेरा
जिनको तूने है पछाड़ा
प्रयास उनका कम जरा
क्यों करे है कम जरा
मेहनत को मेरे बता
गर्व है मुझे खुद पर
मैने जो पाया किया
जो तू लगे उड़ने
इस विजय की शान में
गिर सकता है तू
एक दिन धड़ाम से
फलो से लदे पेड़ सा
तू झुकना सीख ले
प्राप्त तेरा वो ही है बस
जो परहित को संवार दे
मै ना कभी दासी बनी
कभी किसी एक की
ना कभी मेरी बहन
हार, एक जगह टिकी
जीत की खुशी के साथ
सीख भी गजब मिली
हर गुजरते पल की
अपनी अलग खूबसूरती
संदीप पांडे”शिष्य” अजमेर