सवाल एक
बच्चा-बच्चा बूढ़-जवान
सबका है बस एक सवाल
कब होगी शादी तुम्हारी
कब आएगा घर बारात
कब बाटोगी शादी की लड्डू
कब खाएंगे भोज-भात
कब दुल्हन सी सजोंगी तुम
कब खुशियों का होगा फुहार
कब हाथों में रचेंगी मेंहदी
किस हाथों में होगा हाथ
किस रंगों में रंगो गी तुम
कौन रंग,होगा प्रेम का रंग
कब नाचेंगे हम बोलों
कब बाजेगा डिजे द्वार
कब दिन आएगा वो
कब आयेंगे घर मेहमान
कब होगा मंगल गीत
कब बाटेंगे हम शादी का कार्ड
बड़ी नसीबों वाला होगा वो
जिसका मिलेगा तुम्हारा साथ
खुशियों से भरेगा आंगन उसका
जब जाओगी तुम ससुराल।
जिसका नहीं कोई अनुमान
क्यों पूछते हैं ऐसे लोग सवाल
क्यों नहीं समझते लोग हमें
क्यों खड़े करते बार-बार
क्यों उठाते हम पें उंगली
क्यों नहीं बदलते दुनिया की रीत
क्यों हमपे फोड़ते ठिकड़ा
क्यों कोसते हमें दिन-रात
क्यों गोरे,काले में करते भेद
क्यों नहीं उस नजरों से देखते
क्यों नहीं लोग हमें समझते
क्यों करते फिर वहीं बात
कब होगा शादी तुम्हारी
कब आएगा घर बारात।।
नितु साह(हुसेना बंगरा)सीवान-बिहार