जिस क्षण का
जिस क्षण का
हफ़्तों से संत्रास था
जिसके आगमन का
बोझ सा आभास था।
बोझिल घड़ी बीत गई
उम्मीदों को कर धूमिल,
आशाओं को लील गई
अब सन्नाटे की है महफिल।
जिस क्षण का
हफ़्तों से संत्रास था
जिसके आगमन का
बोझ सा आभास था।
बोझिल घड़ी बीत गई
उम्मीदों को कर धूमिल,
आशाओं को लील गई
अब सन्नाटे की है महफिल।