जिस अंधकार से विचलित तुम
जिस अंधकार से विचलित तुम
उस अंधकार से आगे हूं…
जो मोहित कर बांधे मन को
उस हर बहार से आगे हूं…
जो विषय तुम्हारी चर्चा के
मै उनसे आगे निकल चुकी…
तुम बादल को गिनते रहना
मै बनके सूरज बिखर चुकी..
तुम जिस विचार पर अटके हो
मै उस विचार से आगे हूं…
तुम चाहे जितनी चोट करो
मै हर प्रहार से आगे हूं..
जितना तुमने जीवन देखा
उससे भी ज्यादा स्वप्न मेरे…
जितने पर हो संतोष तुम्हे
उससे भी ज्यादा जतन मेरे..
जो बीज तुम्हारी फसलों का
मै उन नस्लों से आगे हूं..
जिसमे तुम उलझे बै ठे हो
उन सब मसलों से आगे हूं..
कर्म ही अब पूजा मेरी
और कर्म मेरा विश्वास बना..
कर्मो से धरती हरियाई
और कर्म मेरा आकाश बना..
तुम उलझ गये जिस दुविधा में
उस हर दुविधा से आगे हूं…
तुम साधन कि मत बात करो
मै हर सुविधा से आगे हूं…
मै छोड़ चुकी जिन राहों को
तुमको अब भी उन पर चलना…
मै बन कर कुंदन निकल चुकी
पर तुमको अब भी है जलना
इस वक़्त के बहते झरने में
मै हर उड़ान से आगे हूं…
तुम भूत मेरा जपते रहना…
मै वर्तमान से आगे हूं…
जिस अंधकार से विचलित तुम
उस अंधकार से आगे हूं…
जो मोहकता मन को बांधे
उस हर बहार से आगे हूं.
©प्रिया मैथिल✍