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4 Feb 2017 · 1 min read

जिस्म दिखाने की होड़

जिस्म को दिखाने की इक होड़ सी लगी है
मैं कैसी लगती हूँ, या कैसा लगता हूँ ??
तस्वीर का अगर दूसरा पहलू देखो तो
यह बदतमीजी,,अब तो सरे राह दिखती है !!

खूबसूरती अगर मिली है तो शुक्रिया कर रब का
दिखाने से तेरा रूप सुहाना नहीं लगता !!

यह तो फनाह है, बस फनाह, मिल जायेगा मिटटी में
याद रखना, इस को उठाने वाला कभी नहीं मिलता !!

अंदर की तस्वीर दिखा दिखानी है अगर ज़माने को
अगर खुदा ने बक्शा हुआ है तुझ को इस ज़माने को
कोहिनूर सी चमकती परख रखते हैं सब मेरे प्यारो
“अजीत” का कहा हुआ, कभी ज़माने को बुरा भी है लगता !!

बर्बाद होती हुई दुनिया का रूप सामने आ रहा है
वो दिखाता है, जमाना देखता हुआ ही जा रहा है
ऐसा लगता है, जैसे कुछ खास रखा हुआ है
और वो इस के रूप में डूबता हुआ जा रहा है !!

कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
252 Views
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