“जिरह”
“जिरह”
वो जिरह, जिरह ही क्या
जो सिद्ध ना कर सके
तुच्छ को अति विशाल
तिल को ताड़
मिथ्या को खरा साँच
उस पर आने ना दे आँच।
“जिरह”
वो जिरह, जिरह ही क्या
जो सिद्ध ना कर सके
तुच्छ को अति विशाल
तिल को ताड़
मिथ्या को खरा साँच
उस पर आने ना दे आँच।