जिन्दगी
जिन्दगी
तू कर तन्हा मुझे
मैं खुद से बतियाऊँगी
तू भर आँखों में उदासी की शाम का धुधँलका
मैं होंठों पे मुस्कान का सूरज उगाऊँगी
तू लगा पैरों में बदिंशों की साँकलें
मैं मन के आकाश में उडान भर आऊँगी
तू उडेल राहों में नफरतों का ज्वालामुखी
मैं प्रेम के दरिया सी बह जाऊँगी
तू खड़े कर निराशा के पहाड
मैं आशा के झरने सी फूट आऊँगी
तू कर लाख कोशिश, मुझे मिटाने की जिन्दगी
मैं फिर भी तुझे खुद में जीकर ही जाऊँगी
दीपाली कालरा