“जिन्दगी क्या?”
गम ना हो तो जिन्दगी क्या,
रब ना हो तो बन्दगी क्या?
जलता है चिराग हवाओं से लड़कर,
हवा ही ना हो तो बुलन्दगी क्या?
आसमां ने रक्खा है बिछाके जाल,
जाल ही ना हो तो परिन्दगी क्या?
चन्द दाने हैं और उड़ान कोसों की,
इम्तहानें ना हो तो जिन्दगी क्या?
नशा वो क्या जो उतर जाए,
रहे ना ता-उम्र तो दिल्लगी क्या?
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
सर्वाधिक होनहार लेखक के रूप में
विश्व रिकॉर्ड में दर्ज।