जिन्दगी की किताब में
जिंदगी की किताब में
कुछ पन्ने महबूब-ए-इश्क के होते हैं
कुछ बर्बाद होते है इसमें
कुछ अपना घर जलाते हैं
मेरे इश्क की बात ही निराली है
वो आकर कहती है
मुझे तुमसे प्यार तो है
पर हम तेरे हो नहीं सकते
फिर हमने भी उनसे पूछ ही लिया
जान-ए-महबूब जान की बाजी लगाने से डरते क्यों हो
तो पहले तो जनाब मुस्कुरा दिया
फिर बड़ी ही कातिल अदाओं से कहा
वो बात आप पूछते ही क्यों हो
जो बताने के काबिल के काबिल नहीं है