थकी कहाँ है जिन्दगी
थकी कहाँ है जिंदगी,
दुर्गम पथों के रार से,
कदम कहाँ थके भी हैं,
चलके नग खाई पार से।
ये जिंदगी है आस की,
रुकी कहाँ है जिंदगी।
ले भार पीठ पर चले,
सरक रही है जिंदगी।
तमों की काली छाँव में,
है धैर्य रखना जिंदगी।
जिसे ना हो ठिंकाँ कोई,
जो साथ दे वो जिंदगी।
घड़ी घड़ी जो कट रही,
उम्मीद है ये जिंदगी ।
गिरके जो सम्भल सके,
वो ही है अच्छी जिंदगी।
हवा जब सर्द सर्द हो,
तो लौ गरम है जिंदगी।
और रास्ते जब गर्द हों,
तब धैर्य दे वो जिंदगी।
बहके जब जीवन नैया,
पतवार बनती जिंदगी।
हर सुनामी धार में,
जो तैर ले वो जिंदगी।
तमों की काली रात में,
टिमटिमाये वो है जिंदगी।
और गमों की बारात में,
मुसकुराए वही जिंदगी।
जमाना चका चौंध में,
ना भटके तेरी जिंदगी।
सरल दिखे सीधी खड़ी,
किनारे पर ही जिंदगी।
जल धार खार तेज हो,
और बह रही हो गन्दगी।
बन मीन नौकाकार तब,
जल चीर दे वो जिंदगी।
भूखा ना हो कोई यहाँ,
जो क्षुधा भरे वो जिंदगी।
देखे जो नग्न तन कोई,
आँचल ढके वो जिंदगी।
बुराइयाँ जो जीत ले,
तब धन्य होती जिंदगी।
जो अपनों से ही हार ले,
मुस्कुराती है वो जिन्दगी।
उड़ा दें द्वेष ईर्ष्या सब,
पवन से करूँ बन्दगी।
ना खोये मानवता कभी,
हो धरा पे स्वस्थ जिंदगी।
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अशोक शर्मा , कुशीनगर
उत्तर प्रदेश6392278218