नैह
नेह –
नेह ,स्नेह आकर्षण मेह
आकर्षण अकारण नहीं विचार मन की देंन।।
स्नेह शब्द नहीं स्वर ईश्वर
युग ब्रह्माण्ड यादा कदा
यत्र तंत्र सर्वत्र स्नेह अविरल
धारा धार।।
कलरव ध्वनि नहीं वेग तूफ़ान
नही छण भंगुर नहीं जीवन का सम्बल स्नेह सार रिश्तों का आधार।।
स्नेह सरोवर मन के भावो की
गहराई मोह माया साया स्नेह नेह ठाँव ठौर का नाता रिश्ता
परिवार।।
ना जाने किस समय कहाँ
उमड़ जाय स्नेह बन सावन
फुहार अन्तर मन अनंत भावनावों का तूफ़ान सद्भाव।।
कठिन चुनौतियों में मुश्किल
में स्नेह शांत सरोवर
उन्मुक्त अग्निपथ शमन
पथ विजय साहस हथियार।।
स्नेह सरोवर द्वेष दम्भ रहित
विशुद्ध सात्विक ह्रदय हर्ष चमत्कार चरमोत्कर्ष प्रवाह।।
स्नेह धरातल धैर्य का दैर्ध्
आयाम परिणाम स्नेह अमृत सोपान स्नेह सरोवर सागर बादल जिन्दगी जख्मों का विराम।।
स्नेह नेह का रिश्ता नाता समाज
स्नेह का बंधन मानव मानवता
का लोक लाज।।
स्नेह नेह का कोख आदर्श अस्तित्व जीवन मोल बेमोल अनमोल।।
स्नेह रस स्नेह स्वर मोह
नेह का अंतर प्रस्फुटन है।
स्नेह नेह मोह महिमा
गहराई के तूफ़ान का
शांत शौम्य ठहराव नित्य
निरंतर निर्विकार ।।
स्नेह सत्य कि अनुभव
अनुभूति सार्थक
प्राज्ञ ,प्रज्ञान का विधाता विज्ञानं।।
स्नेह सरोज पल पल
बढ़ाता खिलता दायित्व
कर्तव्य बोध ।।
स्नेह गर्भ से गौरव
मर्यादा मर्म मोह का छोह उफान
नेह ह्रदय में अंकुरण
स्नहे बंधन समाज का करता
निर्माण।।
स्नेह सम्मत है स्नेह सलिल
स्नेह मार्जन परिमार्जन समन
स्वीकार सत्कार आत्म प्रकाश स्नेह अभिजीत स्नेह निष्ठां
सर्मिष्ठा प्रणव पारिजात
अविरल अविराम ।।
स्नेह मोह नेह बहती नित निरंतर प्रवाह स्नेह डोर मन मोर
घनघोर सम्मोहन सम
मन अवनि आकाश
स्वर्ग सत्यार्थ ।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।