जिंदगी भी क्या है?
जिंदगी भी क्या है?
ज़रा से फासलों में कई रंग लिए है।
एक पल महरूम है,
तो दूसरे ही पल बहती नीर है,
पानीयों सी बेरंग है,
जिस ओर बहलाओं
उस ओर की तस्वीर है ।
वादियों में कभी बंजर
तो कभी बांजर में ताबीर हैं,
जिंदगी भी क्या है?
बारिशों में सतरंग है।
भीगती हुई किरणों के
हर अन्दाज़ पर,
दिन का मिहिर है।
हवाओं-सी मलंग है
कभी ईधर डोलती है,
तो कभी उधर डोलती है,
हर दिशा की तहरीर है।
पक्षियों की चहचहाट है,
कूदरत की आवाज़ है,
जो सारे गैहान में गूजती हैं,
मगर अपने आप में एक जंजीर है।
ज़िंदगी भी क्या है?
ज़रा है से फासलों में कई रंग लिए है।