जिंदगी कैसी रही
मौत मेरे सामने खड़ी
मुस्कुरा के मुझसे
कहने लगी
जिंदगी कैसी रही
यह सुनके मन ठहर गया
मैं गहरी सोच में
पड़ गया
तभी मैं सब समझ गया
जिंदगी मैंने जिया ही नहीं
तुझको मैं कैसे बताऊं
जिंदगी मेरी कैसी रही
तुझको मैं कैसे समझाऊं
यह सुन के मौत
ठहर गई
वो गहरी सोच में पड़ गई
तब वो सब समझ गई
जिंदगी मैंने इसे
जीने कब दिया
जीवन में हर पल
मैंने इसे तंग किया
यह कह के
उसके स्वर अटक गए
वो कहने लगी लगता है
मैं रास्ता भटक गई
यह सुन के मन
खुशी से उछल पड़ा
मैं फिर से जीवन जीने
चल पड़ा
©️ आनंद कुमार(मनीष)