जिंदगी की व्यथा
जिंदगी मेरी नहीं तेरी,
फिर कैसी हेरा फेरी।
कर्म ऐसा करो,
तीनो लोक में सुभाष फेले।
मरघट के पहले बाद,
चर्चा हो तेरी।
गगन में तेरी जय जयकार,
कर्मों का करें नमस्कार,
सुख दुख से क्या लेना देना,
सद व्यवहार करते रहना।
जग में रखा धरा पर पैर,
क्यों करते दूजो से वैर।
उदित हो सूर्य,
चंद्रमा शीतल दे पूर्व।
वृक्ष बनो जैसे,
पराओ को देवें आसरा।
जैसे रहो नीर,
कोई भी आकार।
धरा वनों जैसा,
सहनशक्ति जैसा।
पोखर झील बनो,
बिना भेदभाव के
सूखे कंठ बुझी प्यास।
करो ना किसी की आस,
कर्म करो ऐसा,
जग में होवे तेरी जय जयकार