जिंदगी की तन्हाइयों मे उदास हो रहा था(हास्य कविता)
जिंदगी की तन्हाइयों मे उदास हो रहा था
मैखाने मे बैठा देवदास हो रहा था
याद आ रहे थे कुछ बीते हुए पल
जिन्होने मचाई थी जीवन मे हल-चल
कॉलेज के गेट पर एक कन्या से टकराया था
कैसे हुई मोहब्बत ये समझ न पाया था
वो रूप नगर की गोरी,
मै प्रीतम नगर का छोरा
वो हुश्न की किताब थी,
मै कागज था कोरा !
उसकी नजर का तीर दिल के पार हो गया
बैठे बिठाये जिंदगी से वार हो गया ।
इंतजार की रौनक क्या गुल खिला गई
मंजरे इश्क़ मे मोहब्बत की बहार छा गई।
पढ़ने के लिए यूं तो किताबें बहुत थी
पर मेरे लिए Btech का सिलेबस वही थी ।
वो थी stator और मै था rotor
उसके magnetic field मे घूमता रहा
मोहब्बत की बहार मे झूमता रहा ।
इश्क़ की खुराक को overdose कर दिया
जब जोश ही जोश मे प्रपोज कर दिया
वो बोली सूखे हुए पीपल के मुरझाए हुए पत्ते,
तुम कभी ज़िंदगी मे कुछ नहीं कर सकते ।
मोहब्बत की कैंटीन के बीमार बैक्टीरिया
अच्छा नहीं होगा अगर दोबारा ऐसी बात किया।
उस दिन के बाद उससे कोई बात न हुई
कई साल गुजर गए मुलाक़ात न हुई
इश्क़ आग का दरिया है एहसास हो गया
मै मैखाने मे बैठा देवदास हो गया ।
फिर एक दिन धूप मे बरसात हो गई
मै जिससे डर रहा था वही बात हो गई
सिविल लाइंस मे उससे मुलाक़ात हो गई
कुछ पल के लिए सही वो मेरे साथ हो गई
वो मुझे साथ लेकर अपने घर पर आई
बनाके अपने हाथों से खुद चाय पिलाई
मै उसके साथ जिंदगी के सपने सजाने लगा
दिल खामोशी मे प्यार के नगमे गाने लगा ।
तभी…
तभी एक बच्चे ने किया कमरे मे प्रवेश
उसने उसे दिया पास आने का आदेश
मै बेहोश हो गया देख कर किस्मत का हँगामा
जब उसने कहा बेटा ये हैं तुम्हारे “मामा”।
देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
(एक वर्षों पुराने चुट्कुले को हास्य-कविता का रूप देने की कोशिश की है)