जिंदगी की गणित
थक गई हूं
हिसाब किताब करते करते
खुशियों को जोड़ने के नए नए तरीके ढूंढना
दुखो को बांटने की हिम्मत जुटाना
रोज रोज सच और झूठ का पल्डे में खुद को तौलना।
क्यों नहीं जिंदगी बिना किसी गुना भाग के चले।
जो दिन आए वो खुशी खुशी निकले।
क्यों खुद को खुद ही रोज़ का हिसाब देना।
मुझे मेरा बही खाता नहीं रखना।
बस रोज कुछ नया करने की चाह है।
बुरा भला सब उपर वाले का बवाल है।।