जिंदगी एक पहेली
दिनांक 21/5/19
है मौत
एक पहेली
चलता शरीर
सांस रूकी
लाश में है
तब्दील
रिश्ते है
एक पहेली
नाजुक सी है
डोर
जो फिसली
जुबान
गांठ बनी
दिल में
माँ बाप का
प्यार
है
एक पहेली
लूटा देते
सब कुछ
बोलती है
औलाद
किया क्या
तुमने
हमारे साथ
इन्सान
खुद ही है
एक पहेली
मिल जाऐगा
माटी में
सजता है
सोने चांदी से
अब और
न पूछ
पहेली
तू
मुझ से
जिंदगी है
एक धोखा
खुद पर
इतना न इतरा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल