जाल
हर तरफ फैला
साजिशों का जाल
दिन ब दिन
जीना मुहाल ,
दम घुटता
पल – पल
हर कदम पर
दल – दल
फँसने का डर
हर क्षण ,
क्या करें ?
कैसे बचें ?
यही सोचते
रोज जीते ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 04/09/11 )
हर तरफ फैला
साजिशों का जाल
दिन ब दिन
जीना मुहाल ,
दम घुटता
पल – पल
हर कदम पर
दल – दल
फँसने का डर
हर क्षण ,
क्या करें ?
कैसे बचें ?
यही सोचते
रोज जीते ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 04/09/11 )