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25 Sep 2024 · 1 min read

जाम सिगरेट कश और बस – संदीप ठाकुर

जाम सिगरेट कश और बस
कुछ धुआँ आख़िरश और बस

मौत तक ज़िंदगी का सफ़र
रात-दिन कश्मकश और बस

पी गया पेड़ आँधी मगर
गिर पड़ा खा के ग़श और बस

ज़िंदगी जलती सिगरेट है
सिर्फ़ दो-चार कश और बस

लकड़ियां सूखते पेड़ की
आख़िरी पेशकश और बस

याद बेचैनियां करवटें
रात भर कश्मकश और बस

डूबे दरिया में सब मुंतज़िर
गोरी पनघट कलश और बस

संदीप ठाकुर

2 Likes · 1 Comment · 320 Views

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