जान साॅंसत में है !
जान साॅंसत में है !
जान साॅंसत में है !
पाॅंव दलदल में है !
दुर्दिन का कोलाहल है !
मचा हलचल भी है !!
पिछले कुछ महीनों से ,
आई दूसरी लहर है !
रिस रहा कण-कण में…
ये वायरस का जहर है !!
गाॅंव-गाॅंव, गली मुहल्ले ,
काॅलोनी, चौक-चौराहे ,
चहुॅंओर ये पाॅंव पसारे !
फैल रहा शहर-दर-शहर है !!
कितनी बेहाल है जनता ,
बहुत बुरा हाल है उनका !
अस्त-व्यस्त है ये दुनिया ,
पर ये दुष्ट मान ही नहीं रहा !!
कितने नियम पालन करते हैं ,
लोग मास्क सदैव लगाते हैं ,
भले अपनों को गले ना लगाएं….
पर सैनिटाइजर हाथों में लगाते हैं !!
पर किसी विधि से जल्द रुक न रहा….
कच्छप गति से ही लगाम लग रहा !
वैक्सीन का ही इसपे असर पड़ रहा !
जिससे हर चेहरे पे उम्मीद जग रहा !!
दूसरी लहर थमने की संभावना है….
पर तीसरी लहर की बड़ी चर्चा है !
और भी प्रबल होने की संभावना है….
अभी से ही सबको तैयार रहना है !!
ताकि जब कभी ये फिर से रुख करे…
किसी का कुछ भी ना बिगाड़ सके !
हॅंसके ही मुकाबला सभी कर सकें….
देश का हर परिवार सुरक्षित रह सके !!
पर अभी संशय के साये में सब जी रहे !
कुछ करना भी चाहें तो कर नहीं पा रहे !
पता नहीं कब जाएगा ये और कब आएगा ?
सोच-सोच सभी विकल हैं,जान सांसत में है !!
–स्वरचित एवं मौलिक ।
—-अजित कुमार कर्ण
***किशनगंज, बिहार***