जानाॅं
एक तुम्हारी याद और यह मांद चांद जानाॅं
उसकी गवाही में ख़वाब हुए रेज़ा रेज़ा जानाॅं
मैं कहां कहां से समेटूं यादों में कैसे कैद करुं
पूरे के पूरे बिखरे हो तुम ही तुम मुझ में जानाॅं
मैं हाॅंथ बढ़ाती हूॅं तीतलियां नाराज़ होतीं हैं
कहती हैं, रंग सारे बिखरे हैं उसके
क्या पड़ेगा ये भी मुझको तुमको अब बतलाना
~ सिद्धार्थ