“जाग दुखियारे”
“जाग दुखियारे”
जल जंगल जमीनें छीनी
छीनी जीवन धारा,
खेत-खलिहान भी छीने
छीना राज हमारा।
इंसानों की कदर न जाने
पत्थर पूजे सौ बारा,
जाग दुखियारे ऐसी सत्ता
आए न कभी दोबारा।
“जाग दुखियारे”
जल जंगल जमीनें छीनी
छीनी जीवन धारा,
खेत-खलिहान भी छीने
छीना राज हमारा।
इंसानों की कदर न जाने
पत्थर पूजे सौ बारा,
जाग दुखियारे ऐसी सत्ता
आए न कभी दोबारा।