जागो अब तो लालन जागो
उठ जाओ तुम कुछ तो बोलो
भोर भई अब नैना खोलो
जाग गए अब खग मृग सारे
सूरज से हारे अंधियारे
कण कण देखो महक उठा है
सारा आलम चहक उठा है
फूल बनी सब कलियाँ देखो
भँवरों की रँग रलियाँ देखो
ठण्डी ठण्डी पवन सुहानी
झूम रही होकर मस्तानी
हाथ पकड़ तुम नाचो गाओ
उछलो कूदो मौज उड़ाओ
राह नई चुन कदम बढ़ाओ
छू अम्बर को नाम कमाओ
बहुत हुआ अब आलस त्यागो
जागो अब तो लालन जागो
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’