जागृति
विप्र बंधुओं कहां सोए हो
किस स्वप्न में अबभी खोए हो
क्या सब बर्बाद करही निंद खुलेगी ?
क्या इज्जत लुटाकर ही चेतना जगेगी ?
क्यों इतने कमजोर होगए की
अपमानों का प्रतिकार भी नहीं कर सकते
अपने ऊपर होरहे शब्द वारों पे भी
चुपचाप सहकर कोई वार नहीं कर सकते
तुम्हारे फूंक देने से आग नकलती थी
तेरे शापों से सारी दुनिया डरती थी
ओ भूदेव कहलाने वाले शक्ति कहां सोगई
आत्मबल खोगया या गैरत मर गई
संसार तेरे कदमों में तेरी शक्ति देख झुकता था
शक्ति सदा पूजी जाती इसलिए पूजता था ।
क्या समझते हो तेरे मान की रक्षा को
कोई दूसरा तेरे साथ यहां आएगा
अरे अपनी एकता बना शक्ति नहीं जगाएगा
तो जानले अभी और गर्त में जाएगा ।
अपने ऊपर होरहे जुल्मों को अब मत सह
टुकड़ों में मत बंट और मिलकर साथ रह ।
फिर उठा अपनी रक्षा हेतु परशुरामी फरसा
देख तूझे छू भी नहीं पाएगा कोई जरासा
सिर्फ शास्त्र के ही ज्ञान से अस्मत नहीं बंचेगी
जाग शस्त्र को भी उठा फिर दुनिया झुकेगी ।
—-चंदन कुमार—