ज़िन्दग़ी है शराब
कविता :- 4(35)
-: ज़िन्दगी है शराब । :-
दुनिया बड़ा ख़राब है ,
जैसे घड़ा से भरा शराब है ।
जो पीया वह भी पछताया ,
जो नहीं पीया वह कब नशेबाज में गिनाया ।
पीया वही जो नेहा भरी राहों में ज़ख़्म से मजबूर था ,
बिखरे जो है माला , वह भी कभी हरा – भरा फूल था ।
पीया शौक़ से नहीं, नफ़रत की राहों से ,
उसे कोई पिलाया नहीं , जो पीया वह पिया अपने बाहों से ।
दुनिया बड़ा ख़राब है ,
जैसे की महाभारत की काव्य है ।
वर्षा, आंधी, तूफान में उदासी से नहीं , भरी होंठ पर
मुस्कान के साथ पीया ,
हर एक चीज़ न्योछावर कर दिया,
उसके बदले में कुछ नहीं लिया ।
दिन ही अब बचा चार है ,
शराब ही तो ग़म में जीने की उपचार है ।
लगातार उपचार होने पर बुलावा आती है ऊपर से ,
यमराज स्वंय ले जाते है उठा कर घर से ।
शराब । शराब ! शराब ।
कहें रोशन हे मोनू ये दुनिया ही है ख़राब ।।
® ✍️ रोशन कुमार झा ??
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता भारत
मो:-6290640716 कविता :- 4(35) Pmkvy copy में
24-02-2018 शनिवार 18:35
ये कविता एक आदमी शराब पीकर बोलते रहे शराब, शराब
हम मोनू लिलुआ वर्क शॉप से आते रहे ।