ज़िंदगी हो गयी है संजीदा…!!!!!
छिपाते छिपाते…
हम इन आंखों की गहराई ना छिपा सके,
जिंदगी के सफर की तन्हाई न छिपा सके…
किस्मत नहीं बदली वो बदल गए,
जिंदगी के वो पल-
न जाने कब और कैसे ढल गए…
बढ़ते ही चले गए हमारे फ़ासले,
बरकरार हैं तेरी यादों के सिलसिले…
तुम्हारा नाम ही काफी है,
दर्द की परिभाषा को मुकम्मल करने के लिए…
दिये अभी तलक भी जल रहे हैं,
हमारे प्यार की मज़ार में…
दिशाहीन हो गयी है ये जीवन की कश्ती,
आज भी आँखे निहार रही हैं रस्ता तुम्हारे इंतज़ार में…
आज भी शामें तुम्हारी यादों में गुज़ार रहे हैं तन्हा,
कहीं बुझ न जाए ये इंतज़ार के दीपक की लौ-
थाम लो आकर हमें ये ज़िंदगी हो गयी हैं संजीदा…!!!!
-ज्योति खारी